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सोमवार, 27 जून 2011

जल अमृत होता है


चिन्टू भइया रोज़ नहाते
बाथरूम के अन्दर।
उछल-कूद कर खूब नहाते
लगते नटखट बन्दर।।

मम्मी डाँटें पापा डाँटें
नहीं  मानते  वे  हैं।
पानी की किल्लत होने पर
भौंह  तानते  वे  हैं।।
एक  दिवस पूरी टंकी का
खत्म  हुआ  जब  पानी।
बिजली भागी, हुआ अँधेरा  
याद आ गई नानी।।

बूँद-बूँद  को  तरसे  चिन्टू
तनिक न मुँह धो  पाए।
और प्यास के मारे उनके
प्राण  हलक  में  आए।।

 समझ आयी पानी की कीमत
आईं    भूलें   याद।
गलती पर अपनी पछताए
खूब करी फरियाद।।

उसको यह माँ ने समझाया
जल अमृत होता है।
समझ-बूझकर खर्च करें तो
पड़ता कब टोटा है।।
  राकेश चक्र 

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