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सोमवार, 27 जून 2011

फूल लुभाते सबको


फूल लुभाते सबको भाई।
‘छाया’ हो या ‘जग्गू’ भाई।
चले बाग में दोनों हँसकर,
सुमन देख आँखें ललचाई।

इच्छा होती    तोडे़ सबको,
लालच से भरते हैं मन को।
नजर घुमाते इधर-उधर  को, 
पैरों में कपकपी समाई।।
फल लुभाते सबको भाई।।

खिले फूल कहते हैं हँस लो,
हाथों से हमको न मसलो।
दूर-दूर से हमसे रस लो।
कुछ तो जानो पीर पराई।।
फूल लुभाते सबको भाई।।

महक उड़ी फूलों से भाई।
सबको लगती है सुखदाई।
महिमा सबने इनकी गाई।
न करते हैं स्वयं बड़ाई।।
फूल लुभाते सबको भाई।।

फूलों से बच्चों ने जाना,
यह जीवन है सफर सुहाना।
डाल पे हिल-मिल गाते गाना,
आओ मिलकर करें भलाई।।
फूल लुभाते सबको भाई।।
-राकेश चक्र 

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