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सोमवार, 27 जून 2011

पेड़


पीपल, बरगद पेड़ बड़े हैं
सबके   हैं   हितकारी।
अनगिन पंछी मधुर तान में
करते   रोज़   सवारी।।

उनके फल भोजन बन जाते
लगते सबको प्यारे।
चोंच मारकर खाते रहते
मिल-जुलकर के सारे।।

छेर  भी  करते  बैठे-बैठे
पत्ते   हो   रहे   गंदे।
फिर भी पेड़ बुरा नहीं मानें
रोज़    बैठाते   कंधे !
आज जमाना बदल गया है
मिटा रहे आपस का प्यार।
नहीं किसी के काम आ रहे
जैसे पेड़ करें उपकार।।
-राकेश चक्र 

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