पीपल, बरगद पेड़ बड़े हैं
सबके हैं हितकारी।
अनगिन पंछी मधुर तान में
करते रोज़ सवारी।।
उनके फल भोजन बन जाते
लगते सबको प्यारे।
चोंच मारकर खाते रहते
मिल-जुलकर के सारे।।
छेर भी करते बैठे-बैठे
पत्ते हो रहे गंदे।
फिर भी पेड़ बुरा नहीं मानें
रोज़ बैठाते कंधे !
आज जमाना बदल गया है
मिटा रहे आपस का प्यार।
नहीं किसी के काम आ रहे
जैसे पेड़ करें उपकार।।
-राकेश चक्र
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